Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 53
________________ (५३) ॥ दोहा॥ ॥ वलतुं विद्याधर नणे, सुण सुंदरी ससनेह ॥ दे श गंधार मांहे नचु, रत्नावद पुर एह ॥ १ ॥ विद्या धर राजा तिहां, मणिचूड मह मतिवास ॥ पटराणी पदमावती, मणिप्रन हूँ सुत तास ॥ ५ ॥ दक्षिण न त्तर श्रेणिनी,राजक्षिसवि बोडी।मुफ पिता संजम लीयो, मोह तणुं दल मोडी ॥३॥ चारित्रियो चारण श्रमण, करतो कर्मनुं सूड ॥ काले इहां याव्यो हतो, विहरंतो मणिचूड ॥ ४ ॥ हवे ते नंदीश्वरें गयो,प्र तीमा वंदनकाज ॥ तमु समीप जाते थके, में तुज अपहरी थाज ॥ ५ ॥ वात कहूं वली ताहरी,पुत्र त णी अनिराम ॥ माने बोल तुं माहरो,पूरे वंबित का म ॥ ६ ॥ वक्र तुरंगम अपहयो, मिथिला नगरी रा य॥ तेणें वनें दोगे ताहरो, पुत्र थनोपम काय ॥७॥ घर पाणी राणीनणी,दीधो पुत्रप्रधान ॥ पंच धायें पा तीजतो, दिन दिन वाधे वान ॥ ७ ॥ प्रज्ञप्ति विद्या ये कह्यो, पुत्र तणो विरतंत ॥नोगव नोग संयोग तुं, मुफशं मन एकंत ॥ ए॥ हूं तुऊने गेहूं नही, हवे तुं माहारे हाथ ॥ तन धन जोवन रूप, फल नोग व मुज साथ ॥ १० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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