Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ (५३) य० ॥ तिणे गजें शुंढादमें ग्रही करी, कबाली या काश ॥ दैवयोगें दीठी विद्याधरें,ऐ ऐ रूप प्रकाश ॥७॥ मय० ॥ पडतां जाली तेणें विद्याधरें, करती कोडी विलाप ॥ वैताढ्यपर्वतें लेई गयो,पण मनमांहि पाप ॥ ए ॥ मय ॥ मयणरेहा कहे सुण विनति, मुज मनें छःख अनेक ॥ ते कुःख केहेतां फाटी पडे, हायु पण सांनल कुःख एक ॥ १० ॥ मय० ॥ बाज रातें वनमा में जल्यो, बालक पुण्य पवित्त ॥ केली घर मूकी हुँ गई, सरोवर स्नान निमित्त ॥ ११ ॥ म य॥ जलहाथी कबाली तें ग्रही,पण बालकनी काण वात ॥ विण धवराव्यो मरशे टल वली,के कोई करशे घात ॥ १२॥ मय० ॥ तेणें मुझने पोहोती कर तिप वनें, अथवा बालक बाण ॥ प्रारथीया उत्तम पहि डे नही, जनम सफल तमु जाण ॥ १३ ॥ मय० ॥ कहे विद्याधर कामातुर थको,जो मुज करे जरतार ।। तो तुं वचन कहे ते दुं करूं, बच्चे साखी किरतार ॥१४॥ मय० ॥ पाठमी ढाल सबल संकट पडी, फुःखमांहे वली दुःख ॥ समयसुंदर नाखे विनोगव्यों, करम तणुं नहीं मुरक ॥ १५॥ मय० ॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104