Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(४५)
सर बाज नलो मल्यो ए॥ एक थोडो परिवार, बंधु बाहिर रह्यो,राति तिमर नर वन नल्यो ए॥१॥धाज जाळं वनमांहि, मारी सहोदर, मयणरेता मंदिर धरूं ए॥नोगवू जोग संजोग, मनोवंडित सुख, मयणरेहा घरणी करूं ए ॥ २ ॥ एम चिंतवी चित्तमाहि, वनमा हे गयो, पूज्युं मणिरथ पाहरु ए॥कहो किहां बांध व मुजा, केम बाहेर रह्यो, ९ घायो रहा करूं ए ॥३॥ केलीघर गयो राय, जबकि ससंन्रम, जुगबाद उनो थयो ए ॥ प्रणम्या बंधव पाय, राय वचन सु णी, शमन नय दरेंगयो ए॥४॥ चल तुं नगर म जार, वनें रहेश्यां नही, एम कही अवसर घटक ल्यो ए॥ दीधो खड प्रहार, छेदी कंधरा, जुगबादु ध रणी ढल्यो ए॥ ५॥ न गम्यो बांधव प्रेम, न गण्यो अपयश, परनव मर पण नवि गरयो ए ॥ न गण्यु पाप श्रखत्र, न गण्युं परःख, मणिरथ निजबांधव हस्यो ए॥ ६॥ पाडी बूम पोकार, मयणरेहा सती, दादा धनरथ कुण कियो ए ॥ धाया पाहरू लोक, पूनियु मणिरथ, केरा प्रहार पापी दीयो ए॥७॥ हे मणि रथ पापिष्ट,माहारा हाथथी,पडतुं खड़ जाण्युं नहीं ए॥ इंगित ने थाकार, सङ जाण्यु एम, नृप बनरथ
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104