Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ (४६) की धो सही ए॥ ७॥ कामयकी बहु क्लेश, मन चंचल सदा, कामथकी अनरथ घणा ए ॥ समयसुंदर कहे एम, ढाल ए पांचमी, हवे कहुं काम विटंबना ए॥॥ ॥ढाल बही॥ राग सारंग ॥ प्राण पीयारे कां तजी ॥ ए देशी॥ ॥धिक धिक कामविडंबना,देखे नही कामांधो रे॥ कामथकी अनरथ घणा, पूरव सुणि प्रबंधो रे ॥१॥ ॥ धिक० ॥ रावण सीता अपहरी, कीधो लुमो कामो रे॥ संकागढ़ लूंटावीयो,द्यां दश शिर रामो रे ॥२॥ ॥धि॥ आईकुमार मुनीश्वरो, मूकी संजम नारो रे॥ श्रीमती सुख जोगव्युं, वरस चवीश अपारो रे ॥३॥ धि॥ पांचशे नारी जेणे तजी, कनकवृष्टिक जेणो रे ॥ वेश्यावचन विलासथी, चक्यो श्रीनंदि षेणो रे ॥॥धि ॥ विहरण वेला पांगुस्यो, अरहन्नो सुकुमालो रे ॥ गोंख बोलाव्यो गोरडी, ते लुब्धो तत कालो रे ॥ ५ ॥ वि०॥ सिंहगुफावासी यति, गयो ने पाल सुदेशो रे ॥ रतनकंबल कीयु नेटणुं, कोण कोण सह्या कलेशो रे॥६॥धि॥आषाढनति माहामुनि, बद्ध बुद्धिलब्धि नंमार रे॥नुवन सुंदर जयसुंदरी,नटवीशुंघ रबारो रे ॥७॥ धि० ॥ पेट पीडा मिशें प्रारथे, श्रमण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104