Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४७)
बडी बंधावतां, नृपति थयो निःफंद ॥२॥अंगे नप नी वेदना, रुधिर वबूटां खाल ॥णमालोचन मलि गयां,वाच रही ततकाल ॥३॥ मरण समें जाणीक री,मयणरेदा बढुमान ॥ मन दृढ करी मधुरे स्वरें,ध में सुणावे कान ॥४॥
॥ ढाल सातमी॥ वणजारानी देशी ॥ ॥ मोरा प्रीतमजीतुं सुण एक मोरी शीख ॥वालम जी सुण एक मो०॥ तुं मन समाधिमाहे राखजे, मो राजीवनजी॥ मोरा प्रीतमजी तुं खामे सघला जीव, ॥ वाल॥नेद चउराशी साख जे ॥ मोराजी० ॥ ॥१॥ए यांकणामोरा प्रीतमजी तुं म करे राग ने दे प। वालम्॥ तुं शत्रु मित्र सरिखा गणे॥ मोरा॥ मोरा प्री० ॥ तुं देजे कर्मने दोष ॥ वाला ॥ तुं चं तरंग वयरी दणे मोरा० ॥ ॥ मोरा प्रीत० ॥ ताहरे देव एक अरिहंत ॥ वाला ॥ तुं गुरु सुसाधु दियडे वहे। मोरा जी०॥ मोरा प्री० ॥ ताहरे केव लिनाषित धर्म ॥ वाल० ॥ तुं तो समकित सूचूं स ईहे ॥ मो० ॥३॥ मो० ॥ तुं दश दृष्टांतें जाण ॥ वाला ॥ ए मनुष्य तो नव दोहिलो ॥ मो० ॥ मो० ॥ जो एणे न कीजें पुण्य ॥ वाला ॥ तोप
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