Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३६) गहगहे, सुणतां चित्त वर्ष थपारो रे ॥ चोथे खंमें ए का दोशे, दुं गाइश सुगुण विस्तारोरे॥३॥ मु॥ संवत सोल चोश समे, चैत्रवदि तेरश शुक्र वारो रे॥ बीजो खंग पूरो थयो,श्री यागरा नगर मकारो रे ॥ ४ ॥ उमु०॥ वडोगड खरतर तणो, गुरु युगप्र धान जिणचंदो रे ॥ श्रीजिनचंद सूरीसरो, प्रतपो बे सूरज चंदो रे ॥५॥ उमु ॥ सकलचंद सुपसाउले, में पूरो कीधो खंमो रे ॥ समयसुंदर कहे संघनो, सदा तेज प्रताप अखंमो रे ॥६॥ उमु०॥ ढाल जी ए बातमी, धन्याश्री रागें सोहे रे॥ समयसुंदर कहे गा वतां, नर नारीनां मन मोहे रे ॥ ७॥ मु॥इतिश्री उमुह नृपप्रत्येकबुचरित्रे दितीयः खंमः संपूर्णः ॥ अथ श्रीनेमिराज कृषि प्रत्येक बुद्ध चरित्रस्य तृतीय खंमप्रारंनः॥
॥दोहा॥ ॥ मूल मंत्र समरूं सदा, पंच जिहां परमि॥ बावन अदर माहे तसु,तिलक मुकुट सिरिदिछ॥१॥ हवे त्रीजो खंम निमि तणो, जोडण जागी बुदि॥ चिंत वित पाम्या पडी, पात्र मले तो सि ॥२॥ सा
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