Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 35
________________ (३५) यंती तजी, दाहा बना रही विललाय ॥ १२ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण बंधव मित्रनुं, मारीयो पर्वत राय ॥ मित्र शेही कीधी चाणकें, नंदराज दीयो के हे वाय ॥ १३ ॥ रे जी० ॥ कारिमुं सगपण सर्वनुं, सु नूम राम प्रकार ॥ निःक्षत्र निर्ब्राह्मण करी, जेणें पृथि वी एकवीरा वार ॥ १४ ॥ रे जी० ॥ संसार सघलो का रिमो, जीव जाणतो ए मर्म ॥ स्वारथ विना विहडे स हु, एक विहडे नही जिनधर्म ॥ १५ ॥ रे जी० ॥ वैराग्य एपी पेरें धावियो, द्धि त्यजी तृण जेम जेल ॥ वेश दी शासन देवता, व्रत नीधुं रे डुमुह नृप तेल ॥ ॥ १६ ॥ रे जी० ॥ ए राग केदारे कही, सातमी ढाल रसाल ॥ गण। समयसुंदर एम कहे, मोरो वंदना हो जो त्रिकाल ॥ १७ ॥ रे जी० ॥ ॥ ढाल याम्मी ॥ राग धन्याश्री ॥ शील कहे जग हुं हुं ॥ ए देशी ॥ ॥ डुमुह नामें मुनिवर नमुं, बीजो प्रत्येक बुधो रे ॥ प्रतिबूज्यो इंध्वजथकी, संजम पाले मन सूधो रे ॥ १ ॥ मु०॥ ए यांकणी ॥ संवेग मारग यादखो, विचरथो वली देश विदेशो रे ॥ नविक जीव प्रति बोध वा, थापे धर्म उपदेशो रे ॥ २ ॥ 5० ॥ गुण गातां मन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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