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(३२) इहां राज पंचारात पडखो॥ रामग्री रागनी ढाल एपा चमी, समयसुंदर कहे जाति कडखो ॥ १७ ॥ च० ॥
॥दोहा॥ ॥ एक दिन चंप्रद्योत नृप,मदनमंजरी दीठ ॥ का म राग विकलो थयो, लागो रंग मजीठ ॥ १ ॥ तातुर बेसी रह्यो,नवि करे जोजन पान ॥ नीसासा ना खें घणा, धरे मंजरी ध्यान ॥ ॥ उमुह कहे राजा कहो,केम चिंतातुर आज ॥कामातुर राजा कहे,मूकी सघलीलाज ॥३॥ कामी व्याधी लोनीयो, मद पी 'धो नरपूर ॥ मरतो नर ए पांचे जणा,लका बोडे दूर ॥ ४ ॥ मुझने वाले जीवतो,तो पुत्री परणाय ॥ नही तर पेशिश अगनिमें, वेदना में न खमाय ॥ ५॥ पु त्री परणावी तुरत, उमुह लह्यो प्रस्ताव ॥ प्रारथीया पहिडे नही, उत्तम एह स्वनाव ॥ ६ ॥ दीधो सब सो दायजो,संतोष्यो सुविशेष ॥ चंग प्रद्योतन रायने, संप्रेडयो निज देश ॥ ७॥
... ॥ ढाल बही॥राग सोरती॥ ॥ हवे ते उमुह नरिंद, निजराज पाले नि६६ ॥ इंध्वज उत्सव ते श्राव्यो, राजा ढंढेरो वजाव्यो॥१॥ सहु लोक मलीमलीयाव्यो, इंध्वज अधिक बगा
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