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(१२) लक रमे रेहां, मागे द्यो मुफ दम ॥ कल ॥ खाज ख पणावे हाथ\ रेहां, नाम पाडयुं करकंम् ॥॥११॥ साधवी यांत्र तपे घणुं रेहां, बालकयुं बहु प्रेम ॥क० ॥ बेटो पण माने मले रेहां, मोह वाध्यो ब द एम ॥क०॥ १२ ॥ मीठा मेवा साधवी रेहां, खा जा लाडु खुर्म ॥क०॥ वोहोरीने दीये बालने रेहां, धिक् धिक् मोहनी कर्म ॥ क० ॥ १३॥ करके हु मोहटो थयो रेहां, रखवाले समसाण ॥ कल ॥क में रुलावे जीवने रेहां, कोई न चाले प्राण ॥क ॥ ॥१४॥ चोथी ढाल ए में कही रेहां,राग केदारा गा य॥क०॥ समय सुंदर कहे कर्मनी रेहां, में गति कहीय न जाय ॥क०॥ १५ ॥
॥दोहा॥ ... कारण किए समसानमें, याव्या दोय अण गार ॥ वंशजाति माहे रह्यो, दीनो दंग एक सार ॥ ॥१॥ एक यति लाठी तणो, जाणे गुणने दोष ॥ बीजा साधु प्रत्ये एम कहे,सहजें राग न रोष ॥ २ ॥ एक गांतिलाठीनली,वेढ उगती थाय॥तान तिगंठी संपजे, चउगंठी मरणाय ॥ ३॥ पंच गंठी पथनय हरे, षट गंगी जय जोय ॥ सत गंती नीरोगता, अव
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