Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 19
________________ (१५) यो, दधिवाहन प्रतिबोध्यो रे ॥२॥ धन पद॥ प्रथम गइ पदमावती, करकंमुनी पास ॥कहे केम जूफे बाप झुं रे, राजा रह्यो विमासो रे ॥३॥धन ॥ ते केम राजा पूनियुं रे, साधवी कर्वा सरूप ॥ तो पण पग पा बा न दे रे, अति थनिमानी ते नूप रे ॥४॥धन॥ चालीने चंपा गई रे, पोहोती नृप यावास ॥ दासीएं दीती स्वामिनी रे, भावी मती सवि पासो रे ॥ ५ ॥ धन प०॥प्रणामीने रोई घणुं रे,एह अवस्था देखि ॥ दधिवाहन पण आवीयो रे,दीतो साधवी वेषो रे॥६॥ ॥धन प०॥ राजा पाय प्रणमी करी रे, पूजे गर्ननी वा त॥ ए तुज अंगज जेहगुं रे, यु६ करे दिन रातो रे ॥ ७ ॥ धन प०॥राजा अति हर्षित दुरे, मल वा साहामो जाय॥करकं पण बापना रे, प्रणमे जग तिमु पाय रे ॥॥धन प०॥ पैसारो करी थाणीयो रे,प्रगट्यो घाणंद पूर ॥ घर घर रंग वधामणां रे, चं पा नगरी सनूरो रे॥णाधन पण॥ कंचन पुर चंपा तणां रे, दिये सुतने बेदु राज॥ दधिवाहन दीक्षा ग्रही रे, साखां यातम काज रे॥१०॥धन प०॥ करकंम् परणी घणी रे, प्रेमदा तेणें प्रस्ताव ॥राज लीला सुख नो गवे रे, पुस्य तणे परनावो रे ॥ ११ ॥धन०॥ सिंधू Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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