Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१७) कहाव्या आकरा रे ॥ करकंमु राजा रे, सुणि करत दी वाजा रे ।। ततकाल वजायां वाजां चढतरां रे॥४॥ कटकी करी धायो रे, चंपापुरी आयो रे,तपतेज सवा यो रे पुर वींटी रह्यो रे ॥ गढरोहो मंमयो रे,अनिमान नमयो रे,निजबोल न खमयो नृप साहामो अड्यो रे ॥५॥ रणनूमिका सूडे रे, नालगोला कडे रे, गडडंत गयगुडे शेषनाग सलसले रे॥सरणाई वाजे रे,सिंधूडो साजे रे, शूरवीर विराजे उंचा उबले रे ॥६॥ पहेखा जिण शाला रे,उमट्या मेह काला रे, शिर टोप बना या नेजा जबकतारे ॥जालांबणीयाला रे, उबाले पा तारे, एक सुनट मुबाला चाले चमकता रे ॥ ७ ॥ वाजे रणतूरी रे,बेन दल पूरां रे,एक एकथी शूरा सुनट ते साथमें रे॥जमकी जीन सबके रे,जाणे विजलीच मके रे, तरवार उघाडी ऊबके हाथमें रे॥॥ वहे तीर वचालें रे, आवंतां टाले रे, वयर वाले ते पालो पण सासे नही रे॥निज नेजा फरके रे,वढवाने वरके रे, पग एक न सरके पाना ते सही रे ॥ए॥ मूडे वल घाले रे, बागलथा चाले रे,फोज यावंती वारे एकण वार की रे॥ एक पागडा बोडे रे, नृप होडाहोडे रे, अ शाएं अणी जोडे फोजां मारकी रे ॥१०॥ बगेडी
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