Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 15
________________ (१५) मुं नही थम पाया रे ॥राज ॥ ७ ॥राजा दंग नमाडीयो रे, अनि ज्युं बलवा लागा रे ॥बीहिता विप आवी नम्या रे, चाल्युं नदी कोश्त्रागुं रे ॥राजा॥ वाडव स्थानवासी जिके रे,हरिकेशी चंमालो रे ॥ क रकं ब्राह्मण किया रे, ते सघला ततकालो रे ॥रा ज० ॥ ए॥ सकल नगर शणगारीयु रे,याणंद अंग न मावे रे ॥ गोंख नपरें बाला चडी रे, एगी गली रा जा आवे रे ॥ राज ॥१ ॥घर घर गूडी नहले रे, तोरण बांध्यां बारो रे ॥ हाट पटंबर बाईयां रे, नीड घणी दरबारो रे ॥राज ॥ ११॥ पूर्ण कलश लेप मिनी रे,सहु सामहीये थावे रे॥गोरी गावे सोहलो रे, मोती थाल जरावे रे॥राज॥१२॥ नवरंग नेजा फरहरे रे, ढोल दमामा वाजे रे ॥ मदन नेरि वाजे न ली रे, नादें अंबर गाजे रे ॥राजा १३ ॥राज मंदि र राय यावीयोरे,बेगे तखत तुरंतो रे ॥प्रजा पाले था पणी रे,न्याय तपास करतो रे ॥राज॥१३॥राजा करकंमुहवो रे,आपणी आण वरतावे रे ॥ मनवंबित फल पामीयें रे,पुरस्य तणे परनावें रे ॥ राज॥ १५॥ नलो रागखंनायती रे,सोहेलानी ढाल बहीरे ॥ समय सुंदर कहे श्रावको रे,सानलता यति मीठी रे ॥१६॥ Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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