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(२४) ॥ ढाल पदेली॥राग बिलावल ॥मनको प्यारो
तनको प्यारो॥ए देशी॥ ॥ जंबू दीप मेरु दक्षिण दिशि, नरत देत्र यति सार रे माई|गंगा सिंधु नदी वहे निर्मल,जाणे मोती को हार रे माई ॥१॥ राजा राज करे जय नामें, हरिकुल पंकज नाग रे माई॥गुणमणि माला नयण विशाला, गुणमाला पटराणी रे माई॥॥राजा॥ हार वच्चे जेम पदक बिराजे, तेम तिहां देश पंचाल रे माई ॥ नयर कंपिल पुर जाणो नगीनौ, दिसम्र दि रसाल रे माई॥३॥राजा॥ देहरा विण किंहां दम न दीसे, लोकने सबल यासान रे माई ॥ दीवा विण नही स्नेह तणो दय, हाट विना नही मान रे माई ॥ ४ ॥राजा॥ सर्प विना को नही दो जीनो, असि विण नही दृढ मूठ रे माई ॥ माहोमांहे नको दे केहने, धनुष विना निज पूंठ रे माई ॥ ५ ॥रा जा० ॥ बंध नही नारी वेणी विण, सारी विण नही मार रे माई॥ तर्क विना नही वाद नगरमें,पुत्र विना नहीं नारी रे माई॥६॥राजा॥ दान विना कोई व्य सन न दीसे, धर्म विना नही लोन रे माई ॥ न्याय निपुण राजधर्मी जन, सुंदर नगर सशोन रे माई
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