Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 8
________________ फाडयां प्रथिवी पेट ॥ सूड निदान कीयां घपांदीधा बलद चपेट ॥ते मुजः॥१७॥ मातीने नवें रोपिया, नाना विध वृक् ॥ मूल पत्र फल फूलना, लागां पाप ते जद ॥ते मुज॥१॥ अधोवाईयाने नवें,नखाथ धिका नार ॥ पोरीचंट कीडा पडया, दया न रही ल गार ॥ ते मुज॥ १५ ॥बीपाने नवें तस्या,कीधा रं गए पास ॥ अगनि धारंन कीया घणा, धातुर्वाद घ ज्यास ॥ ते मुजण॥ २० ॥ शूरपणे रण फूजता, मा खां माणस वृंद ॥ मदिरा मांस माखण नख्या, खाधा मूल ने कंद ॥ ते मुज॥१॥ खाण खणावी धातु नी,पाणी नल्नेच्यां ॥आरंन कीधा अति घणा,पोतें पा पज संच्यां ॥ते मुज०॥॥ अंगारकर्म कियां वली, घरमें दव दीधा ॥ सुंस कस्या वीतरागना, कूडा को सज पीधा ॥ ते मुज॥२३॥ बिलि नवें उंदर जीया, गिरोली हत्यारी॥ मूढ गमार तणे नवे, में जूलीख मारी॥ ते मुज॥श्ानाडनूंजा तवं नवें, एकेंख्यि जीव ॥ ज्वार चणा गहुँ शेकीया, पाडता रीव ॥ ते मु ज०॥२५॥.खांमण पीसा गारना,वारंन अनेक॥ रांधण इंधण अग्निना, कियां पाप उदेक ॥ते मुज०॥ ॥॥विकथा चार कीपी वली, सेव्या पांच प्रमाद ॥ Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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