Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ ला कोण अाधारजी। कोइरा॥११॥ वली वैराग्य चडी ते राणी, रोये न लाने राजजी॥ चनराशि ल ख जीव खमावी, सारं पातम काजजी। कोइरा॥ ॥१२॥ दुःखमाहे जे धर्म संजारे, तेहने कोइ न तो लेंजी॥मारुणी रागें ढाल ए बीजी, समयसुंदर एम बोलेजी॥कोरा ॥१३॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ जननी मन याशा घण।। ए ढाल । ॥राग वेराडी॥ हवे राणी पदमावती,जीवराशि खमावे ।।जाण पएं जग ते नखं, एण वेला यावे ॥१॥ ते मुज मि जामि उक्कडं,अरिहंतनी साख ॥जे में जीव विराधिया, चनराशि लाख ॥ ते मुज० ॥२॥ सात लाख एथि वीतणा, साते अपकाय ॥सात लाख तेनकायना,सा ते वली वाय ॥ ते मुज॥३॥ दश प्रत्येक वनस्प ति, चौदह साधार ॥ बि ति चरिंख्यि जीवना, बे बेलाख विचार ॥ ते मुज०॥४॥ देवता तिर्यंच नारकी,चार चार प्रकाशी ॥ चन्दह लाख मनुष्यना, एलाख चोराशी॥ ते मुज०॥५॥ एण नव परनवें सेवियां, जे पाप अढार ॥ त्रिविध त्रिविध करी परि हाँ, उर्गति दातार ॥ते मुज॥६॥ हिंसा कीधी जीव Jain Educationa Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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