Book Title: Karkanduadik Char Pratyek Buddhno Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ष्टवियोग पाडया किया,रुदन विषवाद ॥ते मुज०॥२॥ साधु थने श्रावक तणां, व्रत लेई नांग्यां ॥ मूल बने उत्तर तणां, मुफ दूषण लाग्यां ॥ते मुज०॥॥ साप वींडी सिंह चितरा,शकराने समली ॥हिंसक जीवतणे जवें, हिंसा कीधी सबली ॥ ते मुजण॥ ए॥ सुखाव डी दूषण घणां, वली गर्न गलाव्या ॥जीवाणी ढोल्यां घणां, शील व्रत नंजाव्यां ॥ ते मुज॥३०॥नव अ नंत नमतां थकां,कीधा कुटुंब संबंध ॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसिहं,तेहगं प्रतिबंध ॥ते मुज॥३१॥जव धनं तनमतां थकांकीधा परिग्रह संबंध ॥ त्रिविध त्रिवि ध करी वोसि,तेदशुं प्रतिबंध ॥ ते मुज॥३॥ए णि परें इण नवें परनवें, कोषां पाप अखत्र॥ त्रिविध त्रिविध करी वोसलं, करुं जनम पवित्र ॥ ते मुज० ॥ ॥३३॥राग वैराडी जे सुणे, ए त्रीजी ढाल ॥ समय सुंदर कहे शीलथी, बूटे ततकाल ॥ ते मुज॥३३॥ ॥दोहा॥ ॥वली राणी पदमावती,शरणां कीधां चार ॥ साना री असण कीडे, जाणपणानुसार ॥१॥गाथा॥ जर मेदुङ पमा, श्मस्स देहस्स श्माई वेलाय ॥ थाहार मुवहि देहं,चरमे समयंमि वोसरीयं,सत्वे तिविहेण वोसि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 104