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पाजेब
जवाब में वह मुझी से पूछने लगी कि तो फिर कहाँ है ? मैंने कहा कि तुमने ही तो रक्खी होगी। कहाँ रक्खी थी?
बतलाने लगी कि मैंने दोपहर के बाद कोई दो बजे उतार कर दोनों को अच्छी तरह सम्भाल कर उस नीचे वाले बक्स में रख दी थीं । अब देखा तो एक है, दूसरी गायब है। ___मैंने कहा कि तो चलकर वह इस कमरे में कैसे आ जायगी? भूल हो गई होगी। एक रक्खी होगी, एक वहीं-कहीं फर्श पर छूट गई होगी। देखो मिल जायगी । कहीं जा नहीं सकती।
इस पर श्रीमती कह-सुन करने लगी कि तुम तो ऐसे ही हो । खुद लापरवाह हो, दोष उल्टे मुझे देते हो । कह तो रही हूँ कि मैंने दोनों संभाल कर रखी थीं। ___ मैंने कहा कि सम्भाल कर रखी थी, तो फिर यहाँ-वहाँ क्यों देख रही हो ? जहाँ रक्खी थी वहीं से ले लो न । वहाँ नहीं है तो फिर किसी ने निकाली ही होगी। ___ श्रीमती बोलीं कि मेरा भी यही ख्याल हो रहा है । हो न हो, बंसी नौकर ने निकाली है। मैंने रक्खी, तब वह वहाँ मौजूद भी था।
मैंने कहा कि तो उससे पूछा ? बोली कि वह तो साफ इन्कार करता है। मैंने कहा कि तो फिर ?
श्रीमती जोर से बोली कि तो फिर मैं क्या बताऊँ ? तुम्हें तो किसी बात की फिकर है नहीं । डाँट कर कहते क्यों नहीं हो, उस बंसी को बुला कर ? जरूर पाजेब उसी ने ली है ।
मैंने कहा कि अच्छा, तो उसे क्या कहना होगा ? यह कहूँ कि ला भाई पाजेब दे दे!