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जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] "कहाँ से आया, कौन है ?" "और तू कौन है जो आया है पूछने ?"
"अपने आप बताओगी।"-धमकी देकर वह चलता बना। तब पति-पत्नी के सम्भाषण में व्यवधान डालकर माजी ने सूचना दी। “लल्लू , तुझे पूछता एक सिपाही आया था । एक महरिया भी नौकरी पूछती आई थी। पता लगता है, वह भी तेरी ही खोजखबर में थी।" ___"होंगे कोई, माजी। कुछ बात नहीं ।"-बड़े करारेपन से कहकर वह हँस दिया । माजी चली गई।
लेकिन करारेपन से क्या और हँसी से क्या ? क्योंकि तभी उन्होंने आज ही शिमला चल देने की बात सोचनी प्रारम्भ कर दी। सिपाही और उस स्त्री-दोनों ही की बात ने कुछ हौल-सा जी में पैदा कर दिया।
"क्या होगा ?"-करुणा ने पूछा ।
"कुछ नहीं होगा क्या ?"-हँसकर प्रमोद ने जवाब दे दिया । रधिया ने आकर मालकिन को खबर दी
"कानपुर से आए हैं। कोई वकील हैं..." "नाम ?...."-नई उमर की मालिकन ने व्यग्रता से पूछा । "कहाँ ठहरे हैं ?" रधिया ने पता बता दिया।
अगले रोज सबेरे उस मकान पर एक मोटर बालगी। रधिया मकान में आकर बोली
"माजी, वह बाबू..."