Book Title: Jainendra Kahani 02
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 238
________________ रामू की दादी २२३ ने कराया, और अब विधुर है, तो फिर इस परिवार के लोग झटपट उसका ब्याह करा देने को उत्सुक हैं । और तीन बरस का रामू तो बस इसी का है । उसे जब देखो, तब रमचन्ना । दादी की गोद में से पूरी तरह आँख खोल कर उठा नहीं कि-रमचन्ना। इस रमचन्ना की कमर और कन्धे पाकर इस काठ के उल्लू रामू को यह भी पता नहीं है कि कोई माँ भी होती है, जो उसके नहीं है । और कोई बाप भी होता है जो भी लगभग उसके नहीं है। जब से इस रामू का बाप इस दुनिया से रामू की माँ को खोकर और महीने-भर के इस नन्हें से रामू को दादी के ऊपर छोड़कर विलायत जाकर रम रहा, तभी से शनैः शनैः यह रमचन्ना उस दादी के निकट नौकर कम होता गया और बेटा ही ज्यादा-से-ज्यादा होता गया। ____ "रमचन्ना, और घर में ही सेंध लगाए!"-दादी अत्यन्त विपन्न भाव से सोचने लगों, “उसे क्या नहीं मिला ? और वह और क्या चाहता है, जो कहकर नहीं पा सकता ? लेकिन यह बहुत खराब बात है, और आज इसे तरह दे दूँ, तो कल और कुछ भी हो सकता है । और मैं नहीं चाहती, यह लड़का रमचन्ना चोर बनकर जेल में सड़े।" दादी ने जोर से आवाज दी, "रमचन्ना !" आवाज़ से पास सोये रामू की नींद को आघात हुआ। उसने चौंककर दोने-सी बड़ी-बड़ी अपनी कोरी आँखें जरा खोली और फिर मींच कर करवट ले दादी की छाती से लगकर सो रहा । दादी ने पुकारा, "रमचन्ना !" रामचरण भीतर आया और दादी की खाट के पास खड़ा होकर हँसते हुए बोला, "हमारे रामजी सो रहे हैं ! क्या है,

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