Book Title: Jainendra Kahani 02
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 239
________________ २२४ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] अम्माँजी ? लायो, इसे बाजार से रेवड़ी दिला लाऊँ, बहुत सो लिया।" ___ यह लड़का चोरी करेगा और फिर इस तरह से सामने आकर क्नेगा भी। दादी कठिन होगई, और तुरन्त कुछ बोल नहीं सकी। __ रामचरण ने देखा, कहीं कुछ गलत है । उसने हठात् कहा, "उठो रामचन्द्रजी, भोर हो गई।" __ और रामू ने झट आँखें खोल ली, बाँहें फैला कर कहा, "लमअन्ना।" वह बढ़कर रामू को गोद में उठा ही लेना चाहता था कि दादी ने कहा, "ठहर रे रमचन्ने !" बच्चा सहम कर रह गया और इस पर दादी का मन भीतर से और भी कठिन हो आया । इस समय उसके मन को बड़ा क्ले श था। ___ "ठहर रमचन्ने,"-दादी ने कहा, "पहले बता, तैंने यहाँ से गिन्नी ली है ?" "कैसी गिन्नी अम्माँजी ?” रमचन्ना ने हँसकर कहा और झुका कि रामू को गोद में ले ले। "मैं कहती हूँ, तैंने यहाँ से गिन्नी नहीं ली ? सच बोल नहीं ली?" रामचरण चुप। दादी ने कहा, "मैं जानती हूँ, तेने ली है । मैं तो सोचती थी, तुझ से कहूँ कि अगर तुझे जरूरत है, तो मुझ से क्यों नहीं कहता। एक छोड़ क्या दो गिन्नी मैं तुझे नहीं दे सकती ? पर, क्यों रे, तू अब ऐसा हो गया है कि पहले तो चोरी करे, फिर उसे कहे नहीं, और पूछे तो चुप हो जाय ?"

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