Book Title: Jainendra Kahani 02
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 236
________________ रामू की दादी रामू की दादी ने उठकर जो तकिए के नीचे टटोला, तो पायादा हैं । एक गिन्नी गुम हो गई है । उनकी वृद्ध देह इस पर क्षमता से भर आई । उठ बैठीं, बिस्तर खखोल डाला, यहाँ देखा, वहाँ देखा। पर, गिन्नी बिल्कुल गायब थी । अब गिन्नी गिन्नी है। और आज यह गिन्नी होना अपने में किसी तरह कम बात नहीं है । तिस पर चीजों के लापता हो जाने का सिलसिला ही उठकर यों चल पड़ने का नाम ले लेगा, तो हद कहाँ मिलेगी । रामू की दादी सोचने लगी, आखिर गिन्नी हो क्या गई होगी। उससे आदमी के मन में पंख भले लग जायँ, पर गिन्नी चीज़ वजनदार है, इज्जतदार है, आदमी सरीखी जानकी वह नहीं बनी, और खोटी नहीं है; सच्चे सोने की वह बनी है और ठोस है। इससे तकिए के नीचे से वह यदि एकदम अलभ्य बन गई है, तो किसी भाँति स्वयं उस पर सन्देह नहीं किया जा सकता, उसके लिए किसी आदमी को पाना होगा । २२१

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