Book Title: Jainendra Kahani 02
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 234
________________ बिल्ली बच्चा २१६ मुन्नी ने कहा, “अम्मा, बिल्ली - बच्चा दूधू पीए । कहकर बच्चे को जोर से उसने अपनी छाती में खींच लिया ।" माँ लौटकर एक कटोरी में दूध ले आई। मुन्नी ने बच्चे को गर्दन से दबोच कर उसका मुँह कटोरी में करते हुआ कहा, "पी, दूधू पी, बिल्ली बच्चे ।" लेकिन बच्चा अपनी गर्दन छुटाने में अधिक आमही रहा, दूध की ओर समुत्सुक नहीं हुआ। मुन्नी ने तीन-चार थप्पड़ उसको जमाये, कहा, "नहीं पिएगा. ऐं ? नहीं पिएगा ? -पी, पी।" पीट- पाटकर जब फिर उसका मुँह कटोरी में किया तब भी बच्चा हठ पर ही कायम दीखा । उसने दूध पिया ही नहीं । मुन्नी ने उसको उस समय बड़े प्यार से थपका. उसके बदन को सहलाया, उसके मुँह को अपने मुँह के पास ले जाकर प्यार किया, उसके गालों को अपने गालों से रगड़कर कहा, “पी ले मेरे, बिल्ली-बच्चे, मेरे बच्चे | कहकर उसके मुँह का चुम्बन भी लिया ।" इस बार विल्ली का बच्चा अपनी छोटी-सी जीभ निकाल कर कटोरी का दूध चाट कर पीने लगा । लड़की को यह देखकर बड़ा कुतूहल हुआ, उसमें इस बच्चे के लिए स्नेह जाग श्राया । फिर तो अनायास ही जीवन का स्नेह भी उसमें खोया न रहा । उस दिन से वह अच्छी होने लगी । हमेशा बिल्ली - बच्चे को अपने पास चिपटा कर ही सोती । जगने पर कभी वह न मिलता तो उसे पाये बिना न खुद चैन लेती, न हमें चैन लेने देती + उसके बाद तो आप जानते ही हैं कि एक दिन वह भी आया कि वह फल - फूलकर खूब मोटी भी हो गई । 'हंस' का अनुरोध पाया कि कहानी लिखो । कहानी लिख को तैयार होकर सोचता हूँ, क्या लिखना होगा। उसी समय तार

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