Book Title: Jainendra Kahani 02
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 233
________________ २१८ जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] देखती है कहीं से मुन्नी के खटोले पर नन्हा-सा बिल्ली का बच्चा एक आ गया है । मुन्नी ने दोनों हाथों की मुट्टियों में उसे जोर से दबोच कर रखा है और वह की-की कर रहा है। - अम्मा को आते देखकर ही मुन्नी ने कहा, "अम्मा, बिल्ली बच्चा !" उस समय उसके चेहरे पर जैसे कुछ लौटी हुई सुधि की आभा दीखी। और मानो यह कहते-कहते बच्चे पर से उसकी उँगलियाँ कहीं कुछ ढीली न हो गई हों, और भी उसे दबोच कर मुन्नी ने कहा, "अम्मा, बिल्ली बच्चा !” बिल्ली के बच्चे ने और भी जोर से किया, "कीं-की-कीं"। फिर भी मानो वह अपने पर काबिज़ उस स्वामित्व से बिछुड़ना न चाहता था। ___ बिल्ली का बच्चा सूखा-सा था। मानो किसी ने अभी मुंह में लेकर उसे बुरी तरह झकझोर दिया हो, वह सहमा हुआ था। मुन्नी ने कहा, "अम्मा, दूधू ।" अम्मा ने खुश हो पड़ कर कहा, “दूध पियेगी बेटा ?" मुन्नी ने बिल्ली-बच्चे को दिखा कर कहा, "बिल्ली-बच्चा, अम्मा ।" माँ ने डर कर कहा, "बेटा, उसे छोड़ दे, पंजे-वंजे मार देगा।" और माँ उसके हाथ में से बच्चे को ले लेने के लिए आगे बढ़ी। मुन्नी ने अपनी मुट्टियों को मजबूत कर लिया । उसके चेहरे पर दीखा, मानो कि वह मुकाबिला करेगी। और बच्चा जोर से कीका। ___ माँ पास आते-आते रुक गई, धीमी और स्निग्ध वाणी से बोली, "बेटा, उसे छोड़ दे । जानवर है, पंजे-वंजे गाड़ देगा।"

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