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१८४ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] हैं। और फिर है, व्याह, जिसमें एक सास मिलती है और एक ससुर मिलता है।
वह माँ है, और उसके पेट की कन्या है। पर इस दुनिया को लेकर वह झंझट में पड़ जाती है । तभी नूनी को थप्पड़ मारकर अपनी गोदी से दूर करके कहती हैं, “पढ़ !"
और नूनी रोती है और पढ़ नहीं सकती। और माँ कहती हैं, “कम्बख्त, पढ़।"
तब लड़की के पढ़ उठने से ही गुजारा होता है । या माँ के जी में आँसू की भाप-सी उठ आने पर भी गुजारा हो जाता है। तब वह कहती हैं, "मास्टर जी, इसे तस्वीर वाला सबक पढ़ाना । और मास्टर जी, इसके मन के मुताबिक पढ़ाना ।..."
और फिर नूनी की ओर जो देखती हैं, तो और कहती हैं, "अच्छा मास्टर जी, आज छुट्टी सही। जरा कल जल्दी आ जाना।" ___ माँ तो माँ है, पर लड़की तो सदा लड़की बनी रहेगी नहीं। माँ के मन में यही बात उठकर दर्द दे रही है । आज तो लड़की है; पर एक कल भी तो आ पहुँचने वाला है, जब उसका ब्याह होगा, और लोग पूछेगे, कितना पढ़ी है, क्या जानती है। तब उनके सामने यह बात किस तरह कहने लायक हो सकेगी कि मेरे बड़े दुलार की है, बड़े प्यार से मैंने पाली है । तब तो खोज कर यही कहना होगा कि खूब काम सीखा है, और उस मास्टर से इतना पढ़ी है, और वहाँ से यह पास किया है। उस कल के दिन आने पर चुप नहीं रह जाय ; बल्कि बहुत-कुछ उस रोज कहने के लिए उसके पास जमा हो-इसी के प्रबन्ध में तो वह है। वह माँ तो है; पर यह भी कैसे भूले कि इसीलिए है कि किसी अजनबी को खोज