Book Title: Jainendra Kahani 02
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 224
________________ प्रपना-पराया २०६ का पता नहीं है। अब इसको कहाँ ढकेल दूं ? पौ फटते ही चल दूंगी।" भठियारे के मन में न था कि यह जाय, पर सरकार की खागी का उसे डर था। ____ उसने कहा, "माई, किनारे का अस्तबल है, वह मैं तुम्हें बताये देता हूँ। रात वहीं काटो। तुम देखती नहीं हो, इससे मेरी रोजी पर खतरा आता है।" ____ इस पर उसने गोद से बच्चे को उठाकर दूर ढकेल दिया, कहा, "लो, इसे ले जाके उनके पैरों में डाल दो, वह जूते से इसका ढेर कर दें । मैं फिर चली जाऊँगी।" इतना कहकर वह दोनों हाथों में अपने सिर को लेकर धीरेधीरे रोने लगी। उधर फर्श पर पड़ा बच्चा जोर से चीख रहा था । ___ सराय-वाला इस पर सहमा-सा रह गया। उसने लौट आकर कहा, “हुजूर, कुछ घंटों की और बात है। आप उसे माफ कर दें। वह बहुत दुखिया मालूम होती है।" ___इस आदमी को ऐसा लगा कि उसके हुक्म की अवहेलना हो रही है। वह अपने कमरे में टहलता हुआ, जो कहन-सुनन भठियारे और बच्चे की माँ के बीच में हुआ, सब सुन रहा था। उसके मन को आराम नहीं मिल रहा था। उसको बुरा मालूम हो रहा था कि क्यों वह इस गन्दी परिस्थिति में पड़ गया ? क्यों उसे जिद करनी चाहिए कि बच्चे को लेकर वह औरत ठीक इसी वक्त कोठरी से बाहर निकल जाय ? लेकिन जब भठियारे ने उसके सामने आकर यह कहा कि उसे दया करनी चाहिए, तब मानों अपने विरुद्ध होकर उसने जोर से कहा, "तुमसे इतना नहीं होता और तुम अपने को

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