Book Title: Jainendra Kahani 02
Author(s): Purvodaya Prakashan
Publisher: Purvodaya Prakashan

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Page 226
________________ अपना-पराया २११ शायद लौटते हुए मुझे रास्ते में ही मिल जाय । मैं उसी के पास इस बदनसीब बच्चे को ले जा रही हूँ।" पुरुष की आँखों में आँसू आ गये। उसने अपने बच्चे को अपने पैरों पर से उठा लिया। वह अपनी स्त्री से यह भी नहीं कह सका कि तुमने मुझे पहचाना नहीं। बच्चे को चूमा-पुचकारा, और डोल-डोलकर गा-गाकर उसे मनाने लगा।

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