________________
१६० जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग] सो ये अब शरारत करके समन्दर पर हमला करने वाले हो रहे हैं,
और गोपीचन्द्र नाम की अकेली मछली ही अपने राज्य की रक्षा करने के लिए कटिबद्ध हुई गली के बीच में खड़ी है। मुसाफिर, तुम झट से निकलते हुए चले जाओ, नहीं तो ये लोग समन्दर में घुस पड़ेंगे, तब वह कुछ नहीं जानेगी, एकाध को जरूर पकड़ लेगी,
और तब उसे उसी की तरह गोपीचन्द्र नाम की मछली बनकर समन्दर में रहकर पहरा देना होगा।
और उनको भी तो देखो। कैसे उल्लसित बाट देख रहे हैं कि पानी उस समन्दर की रानी के कान तक आया नहीं कि वे हुकूमत की स-धूमधाम अवज्ञा करके समन्दर में घुस पड़ेंगे और जोर-शोर से मल-मलकर नहा डालेंगे। __पर, मत समझो, रानी चौकन्नी नहीं है। उसके राज्य में पैर रखकर देखो तो-। वह एक-एक को ऐसा पकड़ती है कि हाँ।
सबने पूछा, "मच्छी-मच्छी, कित्ता पानी ?"
मच्छी-रानी एकदम अपने दोनों तरफ देखती हुई सतर्क हो रही । वह सबको खूब अच्छी तरह ताड़ रही है
उसने कान तक हाथ बढ़ाया, कहा, "इत्ता।"
और सब धम्म-धम्म गली के पत्थर कूदकर बदन मलते हुए नहाने लगे। मच्छी रानी हँसती हुई इन चोरों को पकड़ने के लिए दौड़ने लगी।
वह पास आती कि नहाने वाले उछलकर किनारे हो रहते। बेचारी मछली, पानी छोड़, किनारे की खुश्की पर कैसे पैर रख सकती!
पर, सामने को दौड़ने वाली होकर जो एकदम मुड़कर पीछे