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दो चिड़ियाँ दोनों सूखे पेड़ की डाल पर बैठ गई। थोड़ी देर बाद माँ ने कहा, “बेटा चलें ?"
बेटी को अपने प्रेम की, अपनी दुनिया की याद भूल नहीं रही थी। उसने कहा, "अम्मा, मुझ से चला जायगा ?"
माँ ने कहा, "हाँ, बेटा, तुम सुखी रहो। मुझे अकेली जाने दो।"
बेटी ने कहा, "अम्मा!"
माँ ने सुना, और आशीर्वाद देकर पंख समेटकर वह उड़ चली।
बेटी देखती रही। माँ ओझल नहीं हो गई, तब तक वहीं बैठ रही। फिर उड़ती हुई आकर अपने प्रेमी की गोद में गिर पड़ी। सिसक-सिसककर रोती हुई बोली, "मैं क्या करूँ ? क्या करूँ ?"
उधर वह ऊँची-ऊँची उड़ती जा रही थी। तारा मन्द पड़ता जाता था। उसी ओर चोंच उठाये वह चली जा रही थी। तारा मन्द होता गया, वह अवश होती गई।
कि उषा जगी। तारा छिपा। और वह मुर्दा होकर धरती पर आ पड़ी।