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१७६ जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग]
बोले, "तब तो बड़ी बुरी बात हुई बाबू जी। कारण कि मुसलमान का स्पर्श-"
मैंने कहा, "आपको संशय क्यों होता है ?"
“उनके सर पै जो चोटी नहीं थी, बाबू । उनके गुन आप नहीं जानते।"
मैंने हँसकर कहा, "वे किशनजी को जो मानते थे।"
बोले, "उससे क्या होता है ? पिछान चोटी से होती है।" और एकाएक मुड़ कर क्रोध में कहा, "और तैने क्यों दिया था री, लल्ला को उनके हाथ में ? जाने क्या पराशचित करना पड़े।"
मैंने आश्वासन के लहजे में कहा, "नहीं-मुसलमान नहीं थे।"
बोले, “बाबू तुम नहीं जानते । आजकल हिन्दू मुसलमान सब एक हो रहे हैं। सब किरिस्तान हो रहे हैं।"