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तमाशा
११५ ये सब आजमृदा नुस्खे बाबा ने तैयार किये हैं, और रोज नये-नये करते रहते हैं। एक तो अमोघ और अचूक है । कैसी भी हालत हो, एक कपड़े के टुकड़े पर उसे लिटाओ, एक ओर के छोर एक पकड़े दूसरी के दूसरा, और भुलाओ, फौरन हँसेगा। ____ इसको लेकर बाल-मनोविज्ञान में बड़े-बड़े मौलिक अनुसन्धान भी बाबा ने किये हैं।
बाबा ने तय किया है, इसे गुरुकुल में पढ़ायेंगे। उसके माथे में बड़ी विद्या लिखी है। धन तो ज्यादे होगा नहीं, रेख ही ऐसी है,और हमें धन चाहिए ही क्यों ? पर विद्वान् तो ऐसा होगा कि एक। और उस भावी विद्वान् के गाल पर एक चपत जड़कर कहते-क्यों बे, होगा न विद्वान् ! चपत की चोट से भाग्य में विराजी विद्या डरके मारे भाग जाती होगी,-सचपत प्रश्न के उत्तर में वह रोने लगता । तब बड़े प्यार से उसे कन्धे पर लेकर बाबा कहते-"नहीं, भाई नहीं। हमारा बेटा विद्वान् काहे को बनेगा ? विद्वान् बने कोई और । हमारा बेटा तो घसखुदा बनेगा।" इस आश्वासन पर शान्त हो जाता, और सम्मिलित मंडली में से वकील हँस पड़ते, सुनयना हल्की असहमति प्रकट करती, और दादी तीव्र प्रतिवाद करती-"ऐसा मत कहो । राजा बनेगा-राजा।"
इस तरह बहुतों की आशाओं की टेक, यह प्रद्युम्न, बहुतों के एकान्त आशीर्वाद और स्नेह की छाँह के तले पल रहा था।
जिस रोज का जिक्र है, उससे कुछ रोज पहले बाबा और दादी को विनोद ने पहाड़ भेज दिया था। दिल्ली में बहुत गर्मी पड़ने लगी थी। खुद भी अदालत की छुट्टियों की बाट देखता था । हों, तो वह जाय ।
पालने के पास से आकर कपड़े उतारने के बाद उसने डाक