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३४ जनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग]
"नहीं" "खर्च कर दिए ?" "नहीं" "नहीं खर्च किये?" "हाँ" "खर्च किये, कि नहीं खर्च किये ?"
उस ओर से प्रश्न करने पर वह मेरी ओर देखता रहा, उत्तर नहीं दिया।
"बताओ खर्च कर दिये कि अभी हैं ?" जवाब में उसने एक बार 'हाँ' कहा तो दूसरी बार 'नहीं' कहा। मैंने कहा कि तो यह क्यों नहीं कहते कि तुम्हें नहीं मालूम है ? "हाँ" "बेटा मालूम है न ?"
"हाँ"
पतंग वाले से पैसे छुन्नू ने लिये हैं न ? "हाँ" "तुमने क्यों नहीं लिये ?" वह चुप । “पाँचों इकन्नी थीं, या दुअन्नी और पैसे भी थे ?" वह चुप । "बतलाते क्यों नहीं हो ?"
चुप!
"इकन्नियाँ कितनी थीं, बोलो ?" "दो" "बाकी पैसे थे ?