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आत्मशिक्षण
४५ स्कूल जाते समय रोज यह एक आना पैसा ले जाता है। देते समय पिता उससे तर्क करते हैं कि ऐसी-वैसी चीज़ बाजार की लेकर नहीं खानी चाहिए, समझे ? पर वह बात ऊपरी होती है और पिता अपना टैक्स देना नहीं भूलते । उसको जाते देख पिता ने कहा, "क्यों आज चार पैसे यहीं ले जाओगे?" ।
उसके आने पर कहा, "नाश्ता तो करते जाओ और पैसे भी ले जाना।"
उसने सुन लिया। उसका मुंह गिरा हुआ था और बोला नहीं।
रामरत्न ने सोचा कि स्कूल में शायद देर हो जाने का उसे डर है । थपकाते हुए वह उसे मेज पर ले गये और खुद मँगा कर नाश्ते की तश्तरी उसके सामने रख दी। कहा कि मैं हैडमास्टर को चिट्ठी लिख दूँगा, देर के लिए वह कुछ नहीं कहेंगे। अब तुम खाओ। तभी उन्होंने घड़ी देखी। साढ़े आठ हो गये थे और उन्हें सब नित्यकर्म शेष था।
"खाओ बेटा, स्वाश्रो।" कहते हुए वह वहाँ से चल दिये।
स्नान समाप्त कर पाये थे कि बाहर से दिनमणि ने सुनाकर कहा
"देखो जी, तुम्हारे साहबजादे बिना खाये-पिये जा रहे हैं। फिर जो पीछे तुम मुझे कहो।"
रामरत्न शीघ्रता से केवल धोती पहने और अँगोछ। कन्धे पर रखकर बाहर आये, रामचरण से बोले, "नाश्ता करते जाते, बेटे !"
रामचरण का मुँह सूखा था और गिरा हुआ था। उसने कुछ जवाब नहीं दिया।
"क्यों तबीयत तो खराय नहीं ?" रामचरण ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से पिता को देखा और