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फोटोग्राफी
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कभी मिलना भी न होगा । मैं व्यवसायी फोटोग्राफर भी नहीं हूँ । आपको मैं वचन देता हूँ, मेरे पास तस्वीर रहने में, आपका कुछ भी अहित न होगा ।"
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माँ ने फिर अपनी साथिन की ओर देखा पर उनकी तो तस्वीर खिंची न थी । माँ ने कहा, "आप अखबार में भेज देंगे, अपने यहाँ लगा लेंगे ।"
रामेश्वर ने तुरंत कहा, "मैं वचन देता हूँ, न मैं लगाऊँग, कहीं भेजूँगा; पर आप मेरा परिश्रम व्यर्थ न कीजिए ।”
माँ को विश्वास हो चुका था, कि यह बात लाहौर में बालक के पिता तक अवश्य पहुँचेगी। वह बेचारी क्या करतीं ? बोलीं, “नहीं, आप तोड़ ही दीजिए ।"
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वह इतना विश्वासी समझा जा रहा है, इस पर रामेश्वर भीतर से बड़ा घुट रहा था । इच्छा हुई कि सच-सच बात कह दूँ ; पर ध्यान हुआ— उसे सच कौन मानेगा ? मैं कहूँगा, तस्वीर नहीं खिंची, सिर्फ बालक को बहलाने को तमाशा किया गया था, तो कोई यकीन न करेगा। वह समझेंगी - मैं तस्वीर रखना चाहता हूँ, इससे झूठ बोलता हूँ और बहाने बनाता हूँ । रामेश्वर को इस लाचारी पर बहुत दुःख हुआ; परन्तु उसने कहा, "अगर आप कहेंगी, तो मैं तस्वीर को तोड़ ही दूँगा ; पर मैं फिर आपसे कहता हूँ, मैं दिल्ली चला जाऊँगा । फिर आपके दर्शन कभी मुझे नहीं होंगे। अगर आपकी तस्वीर मेरे पास रही भी, और मैंने टाँग भी ली, तो इसमें आपका क्या हर्ज है ? देखिए, बालक श्याम का चित्र मेरे पास रहने दीजिए। आपके चित्र के बारे में मैंने आपसे पहले ही पूछ लिया था । आपका यह श्याम मुझे फिर कब मिलेगा ? इसके दर्शन को आप मुझसे क्यों छीनती हैं ?”