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जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग ]
वह बोलीं, “हाँ, श्याम का चित्र आप दूसरा ले लीजिए ।" किन्तु दुर्भाग्य, रामेश्वर के पास खाली प्लेट तो कोई नहीं है । होता तो यह बखेड़ा ही क्यों उठता ? कहा, "खेद कि मेरे पास खाली प्लेट ही कोई नहीं है ।"
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जब उसने अपना पीछा छूटते न देखा, तो हार मानकर कहा" अच्छा लीजिए । " - और भरी स्लाइड को खोल डाला ।
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उससे कहा गया, "देखिए, आप बदल न लीजिएगा । " इतना अविश्वास न करें ।” – यह कहकर उसने स्लाइड का प्लेट निकाल कर चलती हुई रेल के नीचे छोड़ दिया ।
जिनकी फोटो न खिंची थी, उनको शायद सन्देह बना ही रहा । रामेश्वर से कहा गया, “जरा वह दिखलाइए तो, देखें आपने फेंका भी या नहीं ।"
रामेश्वर मर-सा गया । उसने उठकर श्याम के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "बालक के सिर पर हाथ रखकर कहता हूँ, मैं इतना असत्यवादी नहीं हूँ । यह कहकर स्लाइड उसने 'माँ' को दे दिया । "
स्लाइड को खोल कर, उसके एक-एक हिस्से को उँगली से दबादबा कर और हरेक कोना टटोल कर साथिन महाशया के यह प्रमाण दे देने पर कि अब सचमुच स्लाइड में कोई चीज नहीं है, रामेश्वर के प्रति उनको थोड़ा-थोड़ा विश्वास होने लगा ।
रामेश्वर ने अब श्याम से खूब दोस्ती पैदा कर ली, और दिल्ली पहुँचते -न-पहुँचते वह श्याम का पक्का मामा बन गया ।
उन्हें आराम से लाहौर की गाड़ी में बिठा कर उनके पैसों को 'अस्वीकार करके, श्याम की अम्माँ से क्षमा माँग कर, और सोते श्याम का अन्तिम चुम्बन लेकर, दिल्ली- स्टेशन पर जब रामेश्वर