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फोटोग्राफी
करता था ? दिल्ली में जब तुम गये थे वह सो रहा था । जागते ही उसने पूछा-'अम्माँ, तछवील वाले मामा क ाँ ऐं ?' जानते हो, अब तुम्हारा श्याम कहाँ है ? क्या ताकते हो ? वह मेरी गोद में छिपकर थोड़े ही बैठा है ! यहाँ नहीं; वह बहुत बड़ी गोद में बैठा है ! देखते हो यह सब क्या है ? आकाश है। यह आकाश ही परमात्मा की गोद है। श्याम उसी गोद में छिप बैठा है। दीखता भी तो नहीं । देखो, चारों तरफ आकाश है, चारों तरफ देखो, कहीं दिखता है क्या ? दिखे, तो मुझे भी दिखाना । मैं भी देखेंगी। चुपचाप ही चला गया। अगर मैं उसे देख पाऊँ, तो कहूँ देख तेरा तछवील वाला मामा देख रहा है। रामेश्वर, वह तुम्हें याद करता गया है।"
रामेश्वर का गला रुंध रहा था, मानो आँसुत्रों का चूट गले में अटक गया हो। माँ की बड़ चल रही थी, मानो शरीर की बची-खुची शक्ति एकबारगी ही निकलकर खत्म हो जायगी। ___"जानते हो। यही चौथी मार्च का दिन था, इसी दिन, इसी वक्त वह गया था। मैं साल-भर से इसी चौथी मार्च को भटक रही थी। सोच रही थी-तुम मिलोगे तो तस्वीर खिंचवाऊँगी, तुम मिल गये, तस्वीर खिंच गई। दोनों को मिलाकर तुम एक तस्वीर बनाओगे न ? देखो जरूर बनाना। मैं कहती हूँ, जरूर बनाना, बड़ी-से-बड़ी बनाना और अपने कमरे में लगाभा । जहाँ चाहे भेजना । अखबारों को भेजना, मित्रों को भेजना । जहाँ दीखें, श्याम और श्याम की अम्माँ साथ दीखें। अब जा रही हूँ, उसी के पास जा रही हूँ-सदा उसी के पास रहने जा रही हूँ।"
माँ की हालत शब्द-शब्द पर क्षीण होती जा रही थी। माँ ने कहा, "सुनो, एक महीना हुआ, मैं विधवा हो गई। वह भी चौथी