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किसका रुपया
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अन्याय
से रुपया
सबको खिलाऊँगा । पर यह क्या कि उस की माँ ही छीन लेना चाहती हैं । उसको यह बहुत बेजा मालूम हुआ । उसने कहा, "रुपया मेरा है । मुझे मिला है ।"
माँ ने कहा, "बड़ा मिला है तुमको ! कमाये तब मेरा-तेरा करना । चुप रह ।”
रमेश का अन्तःकरण यह अन्याय स्वीकार नहीं कर सका । उसने कहा, "रुपया तुम नहीं दोगी ?"
ने कहा, "नहीं दूँगी ।"
रमेश ने फिर कहा, "नहीं दोगी ?"
माँ ने कहा, "बड़ा आया लेने वाला ! चुप रह ।"
नतीजा यह कि रमेश ने हाथ पकड़ के रुपया लेने की कोशिश की । माँ ने हँस कर मुट्ठी कस ली। कहा, “अलग बैठ ।”
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पर रमेश अलग न बैठकर मुट्ठी पर जूझता रहा । माँ पहले तो रही टालती फिर बालक की बदशऊरी पर उन्हें गुस्सा आने लगा । और जब ज़ोर लगाते-लगाते अचानक रमेश ने उनकी मुट्ठी पर दाँत से काट खाया तो माँ ने एकाएक ऐसे जोर से कनपटी पर चपत दी कि बालक सिटपिटा गया । हाथ उससे छूट गया और क्षणिक सहमा हुआ वह माँ की ओर देखता रह गया, मानो पूछता हो कि क्या यह सच है ? जवाब में उसने माँ की आँखों में चिनगारी देखी | माँ के मन में था कि यह लड़का है कि राक्षस ? बदमाश काटता है ।
माँ की तरफ़ निमिष भर इस तरह देखकर वह अपनी कनपटी को मलता हुआ गुम सुम वहाँ से चल दिया, रोया नहीं । कुछ दूर चलने पर माँ ने रुपया उसकी तरफ़ फेंक दिया ।
रमेश ने उस तरफ़ देखा भी नहीं और चलता चला गया ।