________________
किसका रुपया
८७
थी। क्योंकि लड़की गरीब घर की मालूम होती थी। बाबू जी ने पूछा, "रुपया कहाँ गिरा बेटी ?" ___ लड़की ने यहाँ-वहाँ और सभी जगह बताया कि गिरा हो सकता है । तब बाबूजी ने कहा कि अब तो रुपया क्या मिलेगा और लड़की को दिलासा देना चाहा । पर लड़की का डर थमता न था । “हाय रे, अम्माँ मुझे बहुत मारेंगी। हाय री दैया, मैं क्या करूँ । अम्माँ बहुत मारेंगी !"
करुणा के वश रमेश के बाबू जी उस रास्ते पर पीछे की ओर, और सामने की ओर काफी दूर-दूर तक उस लड़की के साथ घूमे । पर रुपया नहीं दीखा, और इकन्नी भी नहीं दीखी। ऊपर से रोशनी भी कम हो चली थी। बाबू को बड़ी दया आ रही थी। लड़की के मन में होल भरा था । "हाय रे, अम्माँ क्या कहेंगी? अम्माँ मुझे बहुत मारेंगी।"
मालूम होता था कि लड़की को माँ का डर तो है ही, उसके नीचे यह भी विश्वास है कि रुपया खोना सच ही इतना बड़ा कसूर है कि उस पर लड़की को मार मिलनी चाहिये । इसी से यह डर ऊपर का नहीं था, बल्कि उसके भीतर तक भरा हुआ था। वह फटी आँखों से इधर-उधर देखती थी और कहीं कुछ सफेद मिलता तो लपक कर उसी तरफ झुकती थी। पर हाथ में कभी चीनी का टुकड़ा आ रहता, तो कभी कोई सूखा पत्ता या कभी सिर्फ चमकदार पथरी।
रमेश के बाबू जी ने काफी समय लगा कर उसे सहायता दी। आखिर रुपये और इकन्नी में से कुछ नहीं मिला तो यह कहते हुए वह बिदा होने लगे कि, "बेटा, अब अँधेरा हुआ, कल देखना । किस्मत हुई तो शायद मिल भी जाय ।"