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जैनेन्द्र की कहानियाँ [द्वितीय भाग]
सुरबाला रानी हँसी से नाच उठीं। मनोहर उत्फुल्लता से कहकहा लगाने लगा। उस निर्जन प्रान्त में वह निर्मल शिशु-हास्यरव लहरें लेता हुआ व्याप्त हो गया। सूरज महाराज बालकों जैसे लाल-लाल मुँह से गुलाबी-गुलाबी हँसी हँस रहे थे। गंगा मानो जान-बूझकर किलकारियाँ मार रही थीं। और-और वे लम्बे ऊँचे-ऊँचे दिग्गन पेड़ दार्शनिक पण्डितों की भाँति, सब हास्य की सार-शून्यता पर मानो मन-ही-मन गम्भीर तत्त्वालोचन कर, हँसी में भूले हुए मूखों पर थोड़ी दया बख्शना चाह रहे थे !