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प्रात्मशिक्षण .. "नहीं, मैं तो उससे कुछ पूछती नहीं, मुँह लटकाये आया और चादर लेकर खाट पर लेट गया । कुछ बोला न चाला ।"
तब पिता ने ज़ोर से आवाज देकर पुकारा, "रामचरण !" सुनकर रामचरण वहाँ आ गया । पूछा, “तुम आज स्कूल पूरा करके नहीं आये ?"
"नहीं।"
"पहले आगये?" "हाँ" "क्यों ?"
इसका उत्तर लड़के ने नहीं दिया। झुककर पास की कुर्सी का सहारा ले वह पिता को देखने लगा।
पिता ने कहा, “सहारा छोड़ो, सीधे खड़े हो। तुम बीमार नहीं हो। और सुनो, तुम सबेरे बिना-खाये गये और किसी की बात नहीं सुनी। स्कूल बीच में छोड़कर चले आये। आये तो रूठकर पड़ रहे। और इतना कहा तो भी अब तक खाना नहीं खाया। बताओ, ऐसे कैसे चलेगा!" __ लड़का चुप रहा।
पिता ज़ोर से बोले, "तुम्हारे मुँह में जुबान नहीं है ? कहते क्यों नहीं, ऐसे कैसे चलेगा ? बताओ, इस जिद की तुम्हें क्या सजा दी जाय ? देखते नहीं, घर-भर में तुम्हारी बजह से क्लेश मचा रहता है।"
लड़का अब भी चुप ही था।
अत्यन्त संयमपूर्वक पिता ने कहा, "देखो, मेरी मानो तो अब भी खाना खा लो और सबेरे समय पर स्कूल चले जाना। आइन्दा ऐसा न हो । समझे ? सुनते हो ?"