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जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] फोटोग्राफर को अलौकिक जान पड़े। उसने ऐसा सुन्दर बालक कभी न देखा था। __ और हाँ, माँ बिल्कुल बालक के अनुरूप थी। वही स्वच्छ खिला हुआ रूप, और वही मधुर प्राकृति; पर माता में सलज्ज संकोच था, और बालक में लज्जा से अछूता चाचल्य ।
बालक मचला हुआ था, किसी तरह नहीं मानता था ।
रामेश्वर ने कैमरा खोला। कहा, “आओ श्याम, तुम्हें एक तमाशा दिखाएँ।"
कैमरे को देखते ही बालक श्याम केलेवाले को और केले पर अपने रूठने को भूल गया। तुरन्त रामेश्वर की गोद में आ बैठा।
रामेश्वर ने पूछा, "तस्वीर खिंचवाओगे ?" श्याम ने ताली बजाकर कहा, "खिंचवाएँगे।"
माँ बालक की प्रसन्नता से खिल उठी और अनायास बोल पड़ी, “हाँ खींच दो।"
रामेश्वर ने बालक को माँ के पास बेंच पर बिठाकर अपने कैमरे को ठीक जमाना शुरू किया। __ बालक बड़े उल्लास से, एक अद्भुत चीज पा जाने की आशा में कैमरे के लेंस की तरफ एकटक देख रहा था। माँ भी यह ध्यान से देख रही थीं, कि फोटोग्राफी कैसे होती है।
रामेश्वर ने कैमरा ठीक कर लिया। फिर न-जाने उसे क्या सूझा कि सकुचाते हुए वह माँ से बोला, “इसमें आपकी भी तस्वीर आ जाती है, कुछ हर्ज तो नहीं ?"
माँ ने कुछ उत्तर न दिया, उन्होंने बेग में से चश्मा निकालकर