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जैनेन्द्र की कहानियां [द्वितीय भाग] "वह रूठा खड़ा है घर में नहीं आता।" "जाश्रो पकड़कर तो लाओ।" ।
वह पकड़ा हुआ पाया । मैंने कहा, "क्यों रे, तू शरारत से बाज नहीं आयगा ? बोल, जायगा कि नहीं ?"
वह नहीं बोला तो मैंने कसकर उसे दो चाँटे दिये। थप्पड़ लगते ही वह एक दम चीखा पर फौरन चुप हो गया। वह वैसे ही मेरे सामने खड़ा रहा। _____ मैंने उसे देखकर मारे गुस्से से कहा कि ले जाओ इसे मेरे सामने से । जाकर कोठरी में बन्द कर दो । दुष्ट !
इस बार वह आध-एक घण्टे बन्द रहा । मुझे ख्याल आया कि मैं ठीक नहीं कर रहा हूँ, लेकिन जैसे कि दूसरा रास्ता न दीखता था। मार-पीटकर मन को ठिकाना देने की आदत पड़ गई थी, और कुछ अभ्यास न था।
खैर, मैंने इस बीच प्रकाश को कहा कि तुम दोनों पतंग-वालों के पास जाओ। मालूम करना कि किसने पाजेब ली है । होशियारी से मालूम करना । मालूम होने पर सख्ती करना । मुरव्वत की जरूरत नहीं । समझे ?
प्रकाश गया पर लौटने पर बताया कि किसी के पास पाजेब नहीं है।
सुनकर मैं झल्ला आया, कहा कि तुमसे कुछ काम नहीं हो सकता । जरा सी बात नहीं हुई, तुमसे क्या उम्मीद रखी जाय ?
वह अपनी सफाई देने लगा। मैंने कहा, "बस तुम जाओ।"
प्रकाश मेरा बहुत लिहाज मानता था । वह मुंह डालकर चला गया । कोठरी खुलवाने पर आशुतोष को फर्श पर सोता पाया। उसके चेहरे पर अब भी आँसू नहीं थे। सच पूछो तो मुझे उस