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पाजेब
मैंने कहा, "यह आप क्या कहती हैं । बच्चे बच्चे हैं। आपने छुन्नू से सहूलियत से पूछा भी ?" ___ उन्होंने उसी समय छुन्नू को बुलाकर मेरे सामने कर दिया । कहा कि क्यों रे, बता क्यों नहीं देता जो तैने पाजेब देखी हो ?
छुन्नू ने जोर से सिर हिलाकर इनकार किया । और बताया कि पाजेब आशुतोष के हाथ में मैंने देखी थी और वह पतङ्ग वाले को दे आया है । मैंने खूब देखी थी, वह चाँदी की थी।
"तुम्हें ठीक मालूम है ?" "हाँ, वह मुझ से कह रहा था कि तू भी चल । पतङ्ग लायेंगे।" “पाजेब कितनी बड़ी थी ? बताओ तो।" छन्नू ने उसका आकार बताया । जो ठीक ही था।
मैंने उसकी माँ की तरफ देखकर कहा कि देखिए न पहले यही कहता था कि मैंने पाजेब देखी तक नहीं। अब कहता है कि देखी है।
माँ ने मेरे सामने छुन्नू को खींचकर तभी धम्म-धम्म पीटना शुरू कर दिया। कहा कि क्यों रे, झूठ बोलता है ? तेरी चमड़ी न उधेड़ी तो मैं नहीं। ___मैंने बीच-बचाव करके छुन्नू को बचाया। वह शहीद की भाँति पिटता रहा था। रोया बिलकुल नहीं था और एक कोने में खड़े अशुतोष को जाने किस भाव से वह देख रहा था।
खैर, मैंने सबको छुट्टी दी। कहा कि जाओ बेटा छुन्नू, खेलो। उस की माँ को कहा कि आप उसे मारियेगा नहीं। और पाजेब कोई ऐसी बड़ी चीज नहीं है।
छुन्नू चला गया । तब, उसकी माँ ने पूछा कि आप उसे कसूरवार समझते हो ?