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पाजेब सबक की भी कोई बात पूछो। मैं सोचती हूँ कि एक दिन तोड़ताड़ दूँ उसकी सब डोर और पतंग । हाँ, तो सारे वक्त वही धुन !
मैंने कहा कि खैर, छोड़ो । कल सबेरे पूछ-ताछ करेंगे।
सबेरे बुला कर मैंने गम्भीरता से उससे पूछा कि क्यों बेटा, एक पाजेब नहीं मिल रही है, तुमने तो नहीं देखी ? __वह गुम हो आया । जैसे नाराज हो । उसने सिर हिलाया कि उसने नहीं ली। पर मुंह उसने नहीं खोला। ___ मैंने कहा कि देखो बेटे, ली हो तो कोई बात नहीं, सच कह देना चाहिए।
उसका मुंह और भी फूल आया। और वह गुम-सुम बैठ रहा।
मेरे मन में उस समय तरह-तरह के सिद्धान्त आए । मैंने स्थिर किया कि अपराध के प्रति करुणा ही होनी चाहिए । रोष का अधिकार नहीं है । प्रेम से ही अपराध-वृत्ति को जीता जा सकता है । आतंक से उसे दबाना ठीक नहीं है । बालक का स्वभाव कोमल होता है और सदा ही उससे स्नेह से व्यवहार करना चाहिए इत्यादि। ___मैंने कहा कि बेटा आशुतोष, तुम घबराओ नहीं । सच कहने में घबराना नहीं चाहिए । ली हो तो खुल कर कह दो बेटा! हम कोई सच कहने की सजा थोदे ही दे सकते हैं ! बल्कि सच बोलने पर तो इनाम मिला करता है। ___ आशुतोष सब सुनता हुआ बैठा रह गया। उसका मुंह सूजा था। वह सामने मेरी आँखों में नहीं देख रहा था । रह-रहकर उसके माथे पर बल पड़ते थे।
"क्यों बेटे, तुमने ली तो नहीं ?" उसने सिर हिला कर, क्रोध से अस्थिर और तेज धावाज में