Book Title: Jain Vivah Vidhi aur Vir Nirvanotsav Bahi Muhurt Paddhati Author(s): Nathulal Jain Publisher: Dhannalalji Ratanlal Kala View full book textPage 8
________________ (३) और अधिक व्ययके रीति रिवाज तथा परेशानियां कम होंगी उतनी ही समाज को राहत मिलेगी,यह हमारा विश्वास है । जैनविधि को श्वेतांवर समाज में भी प्रचलित कियाजाना चाहिए । वहां मी अब मांग बढ़ रही है। दूसरी पुस्तक इसमें वीरनिर्वाणोत्सव और नई वहीमुहूर्त पदति की है । इसका प्रचार भी इन्दौर में और अन्यत्र मालवा आदि में नहींसा था । श्रीमान् जैनजातिभूषण लाला हजारीलालजी साहब इन्दौर ने १८ वर्ष पहले मुझसे लिखवा कर यह अपनी मोर से प्रकाशित करवाई थी और तब से इसका आपने प्रचार भी कराया। इसके बाद दो वार और यह छप चुकी है। आपने इस पद्धति का और विवाह विधि का प्रचार करने में हर प्रकार की सहायता दी है। श्रीमान प्र. दि पं. मुन्नालालजी काव्यतीर्थ इन्दौर को भी जैन विवाह की विधि का भाव अंश दिखलाकर भौर आवश्यक प्रश्नों के संबन्ध में उनसे सम्मति प्राप्त हुई है तथा भाई जयकुमारजी टोंग्या इन्दौर ने भेंट स्वरूप पुस्तक प्रकाशन के लिए द्रव्य प्रदाता को एवं मुझे प्रेरित कर यह कार्य शीघ्र पूर्ण करा दिया इसके लिए उक्त सब महानुभावों का आभारी हूं। संपादक नाथूलाल शास्त्री, इन्दौर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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