Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ अध्ययन करना चाहते थे और इसके लिए वे समर्थ विद्वानों को पुरस्कृत एवं प्रोत्साहित करते रहते थे तथा उनको आश्रय भी प्रदान करते थे। महाकवि पुष्पदंत, रइधू आदि के नाम इसके उदाहरणस्वरूप प्रस्तुत किये जा सकते हैं। जैनों के इस स्वाध्याय प्रेम का ही परिणाम है कि उनके भण्डारों में जैन और जनेतर दोनों ही प्रकार के विभिन्न विषयों के ग्रंथों का बिना किसी भेदभाव के संग्रह हुआ जिनमें आज भी ऐसी हजारों कृतियां हैं जो पालमारियों में बंद पड़ी अपने प्रकाशन की बाट जोह रही हैं । दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी में भी एक ऐसा संग्रहालय है। वहां की प्रबन्धकारिणी कमेटी ने "जैन विद्या संस्थान" नामक एक संस्था की स्थापना की है जिसके कई उद्देश्यों में से एक प्रमुख उद्देश्य संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश, तमिल, कन्नड़, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषाओं के जैन ग्रंथों का आधुनिक शैली में विभिन्न दृष्टिकोणों से अध्ययन प्रस्तुत करना तथा अप्रकाशित रचनाओं को सरल हिन्दी भाषा में अनुवाद सहित प्रकाशित करना है । अपने इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु “जनविद्या" नामक एक पत्रिका के प्रकाशन का शुभारम्भ किया है। अब तक इसके दो अंक प्रकाशित हो चुके हैं तथा यह तीसरा अंक पाठकों के हाथ में है । इसमें अपभ्रंश भाषा के ज्ञात प्राद्य महाकवि स्वयंभू तथा उनके तत्काल बाद में होनेवाले महाकवि पुष्पदंत की रचनाओं का विभिन्न पाठकों ने विभिन्न दृष्टिकोणों से मूल्यांकन किया है तथा चूनड़ी, पाणंदा, नेमीश्वर जयमाल तथा पाण्डे की जयमाल शीर्षक की अपभ्रंश भाषा की ही रचनाएं सानुवाद प्रकाशित की हैं। संस्थान ने अपभ्रंश भाषा की रचनाओं को प्राथमिकता इस कारण दी है कि इस क्षेत्र में अभी तक जो भी कार्य हुअा है वह न कुछ के बराबर है, दूसरे इस भाषा की 80 प्रतिशत के लगभग रचनाएं जैन रचनाकारों द्वारा रचित । हैं और वे मानव-कल्याण की दृष्टि से लिखी गई हैं। आशा है हमारा यह प्रयास जनता में समाहत होगा और पाठक इसके स्वयं ग्राहक बन एवं अन्यों को अधिक से अधिक संख्या में ग्राहक बना हमारे उत्साह में वृद्धि करेंगे जिससे कि जनविद्या के प्रचार और प्रसार की यह योजना और भी अधिक तीव्रगति से प्रवहमान हो सके। जिन रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रेषित कर हमें उपकृत किया है उनके हम कृतज्ञ हैं । संस्थान के संयोजक महोदय डॉ. गोपीचन्द पाटनी, मानद निदेशक एवं पत्रिका के प्रधान सम्पादक प्रो. प्रवीणचन्द्र जैन, सहायक सम्पादक पं० भंवरलाल पोल्याका तथा सुश्री प्रीति जैन आदि ने सम्पादन तथा प्रकाशन कार्य में जो सहयोग प्रदान किया है उसके लिए वे धन्यवादाह हैं । कपूर प्रेस के प्रोप्राईदर अपने अन्य सहयोगियों के साथ सुन्दर और कलापूर्ण मुद्रण के लिए प्रशंसा के पात्र हैं। ... . . . ..... .... -कपूरचन्द पाटनी . ....प्रबन्ध सम्पादक . ..

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 120