Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 25
________________ 20 जैनविद्या (क) कनकपुर के राजा जयन्धर की ज्येष्ठ पत्नी विशालनेत्रा थी। जयन्धर ने कुछ समय पश्चात् पृथ्वीदेवी से विवाह किया। उद्यानक्रीड़ा के लिए जाते समय पृथ्वीदेवी विशालनेत्रा की वैभवपूर्ण शोभायात्रा को देखकर आश्चर्यचकित हो गई। उसके मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। इससे उसके हृदय में संताप पैदा हुआ। उद्यानक्रीड़ा के विचार को छोड़ कर वह जिनेश्वर की वन्दना को चली गई जहां उसने पिहितास्रव मुनि के दर्शन किये । मुनि ने रानी की मनःस्थिति को समझकर उपदेश दिया गुरु पभणइ म करि विसाउ तुहूं, पेक्खेसहि अग्गइ पुत्तमुहूं। रिणयसिरि कि किर मण्णंति गरा, रणवजोव्वणु णासइ एइ जरा। उप्पण्णहो दोसइ पुणु मरण, भीसावणु ढुक्कइ जमकरण। सिरिमंतहो घरि दालिद्दडउ, पइसरइ दुक्खभालभडउ । प्राइसुंदररुवें रूउ ल्हसइ, वीर वि संगामरंगि तसइ । पियमाणुसु अण्ण जि लोउ जिह, पिण्णेहें बीसइ पुणु वि तिह। रिणयकंतिहे ससिबिंबु वि ढलइ, लायण्णु ण मणुयह किं गलइ । इह को सुत्थिउ को दुत्थियउ, सयेलु वि कम्मेण गलत्थियउ। 2.4.4-11 "तुम विषाद मत करो, शीघ्र ही तुम्हें अपने पुत्र का मुख देखने को मिलेगा । मनुष्य अपनी लक्ष्मी को क्या समझते हैं ? नये यौवन का नाश होता है और बुढापा आता है । जो उत्पन्न हुआ है उसका पुनः मरण देखा जाता है। उसे लेने भयंकर यम का दूत पा पहुँचता है । श्रीमान् के घर में दारिद्र्य तथा दुःख का महान् भार आ पड़ता है। एक सुन्दर रूप दूसरे अधिक सुन्दर रूप के आगे फीका पड़ जाता है। वीर पुरुष भी रण में त्रास पाता है । अपना प्रिय मनुष्य भी स्नेह के फीके पड़ने पर अन्य लोगों के समान साधारण दिखाई देने लगता है। जब चन्द्रमण्डल भी अपनी कान्ति से ढल जाता है तब क्या मनुष्यों का लावण्य नहीं गलेगा? इस संसार में कौन सुखी और कौन दुःखी है ? सभी कर्मों की विडम्बना में पड़े हैं।" ___इस उपदेश से पृथ्वीदेवी का मन शान्त हुआ । वास्तव में संसार की अस्थिरता को समझने से ही विवेक उत्पन्न होता है और ईर्ष्या विलीन हो जाती है । हम संसार में कुछ प्राप्त कर सकेंगे इस विश्वास से भी ईर्ष्या चली जाती है । जब पृथ्वीदेवी को यह आश्वासन मिला कि शीघ्र ही उसके पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा तो इस भविष्यवाणी से भी पृथ्वीदेवी का मन शांत हुआ। जीवन में कोई उपलब्धि और आध्यात्मिक आधार ये दोनों ही ईर्ष्या को जीतने में सहायक होते हैं। यहाँ यह समझना चाहिये कि पुष्पदंत ने ईर्ष्या को समाप्त करने के लिए जिस प्रकार के उपदेश का सहारा लिया है, वह उनकी मनोवैज्ञानिक सूझबूझ का परिचायक है। (ख) णायकुमार (नागकुमार) जयन्धर की कनिष्ठ पत्नी, पृथ्वीदेवी का पुत्र था और श्रीधर जयन्धर की ज्येष्ठ पत्नी विशालनेत्रा का पुत्र था। एक बार नागकुमार की वीरता को देखकर श्रीधर के मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। ईर्ष्या जब शान्त नहीं होती है तो वह शत्रुता में बदल जाती है । श्रीधर के प्रसंग में ऐसा ही हुआ । श्रीधर सोचने लगा

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