Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 38
________________ यशोधर का प्राख्यान गुरुकुल में व्याख्यान -श्री नेमीचंद पटोरिया हस्तिनापुर के प्रसिद्ध गुरुकुल के प्राचार्य सुनीतिजी बोले-हे विद्याप्रिय बटुको ! मैंने तुम्हें इसके पहिले कवि पुष्पदंत की दो महान् रचनाओं अर्थात् “महापुराण" और "नागकुमारचरित्र" (णायकुमारचरिउ) के सम्बन्ध में बहुत कुछ कहा है। भाज मैं उनकी तीसरी कृति “यशोधरचरित" (जसहरचरिउ) के सम्बन्ध में कुछ कहूंगा। यशोधर-चरित (जसहरचरिउ) अपभ्रंश भाषा की उत्तम कृति मानी जाती है । यह न महाकाव्य है और न खण्डकाव्य । इसमें केवल प्रधानतः एक व्यक्ति यशोधर का चरित्रचित्रण है इसलिए "यशोधरचरित" (जसहरचरिउ) एक चरित-काव्य ग्रंथ है । यद्यपि यह ग्रंथ कवि पुष्पदंत के सब ग्रंथों में छोटा है किन्तु अपने ध्येय में बहुत ऊंचा है। ___ इसकी कथा एक व्यक्ति यशोधर के आसपास मंडराती है। मूल नायक के एक जन्म की ही नहीं, अनेकों जन्मों की कहानी उनके जीवन के चारों ओर से लिपटी है । इस कथानक के द्वारा कवि ने धर्म, त्याग व अहिंसा का दिव्य संदेश व उपदेश मुखरित किया है। ग्रंथ के पाख्यान को मैं संक्षेप में सुनाता हूं _ यौधेय देश का नरपति मारिदत्त है। उसकी राजधानी राजपुर प्रति समृद्ध और मनोहर है। यद्यपि राजा अनेक भोग-विलासों में डूबा रहता है, फिर भी उसकी नयी-नयी भोगेच्छा उसके हृदय में उमड़ती-घुमड़ती रहती है। वह सोचता है और चाहता है कि उसे

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