Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 44
________________ जसहरचरिउ का काव्य-वैभव -श्री जवाहिरलाल जैन अपभ्रंश भाषा के महाकवि पुप्फयंत (पुष्पदंत) की तीन रचनाएँ-महापुराण, णायकुमारचरिउ तथा जसहरचरिउ प्राप्त हैं। इनका समय ईस्वी सन् की दसवीं शताब्दी है और स्थान महाराष्ट्र-कर्नाटक । इनकी काव्यरचना राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट में हुई । वह गौरवपूर्ण समय कृष्णराज तृतीय का था जिसने मद्रास और आन्ध्र पर आक्रमण कर टोंड मंडल जीता और चोल नरेश राजराज को मारा। यह घटना 949 ई० की है। इसके विपरीत तेईस वर्ष बाद ही कृष्णराज के पुत्र के समय धारा के हर्ष परमार ने मान्यखेट को लूटा और जलाया। यह घटना 972 ई० की है। पुष्पदंत की तीनों रचनाएँ इस चढ़ाव-उतार के समय की हैं । संभवतः इस दुर्घटना का ही उल्लेख उन्होंने इस ग्रंथ के अन्तिम कड़वक (परिच्छेद) में किया है जणवयणीरसि, दुरियमलीमसि। करिणदायरि, दुस्सहदुहरि ।

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