Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 110
________________ कवि नण्ह पण्डित की जयमाला . जो संसार के भूषण हैं, जिनका पापरूपी मैल नष्ट हो गया है, जो शांति के करनेवाले हैं, जिन्होंने मोक्षरूपी पुरी को प्राप्त कर लिया है, जो (सात प्रकार के) भय और (आठ प्रकार के) मदों से रहित हैं, जो जन्म, जरा और मरण से वर्जित हैं ऐसे श्री शांतिनाथ भगवान् को प्रणाम करता हूँ॥1॥ पण्डित वह है जो परस्त्री का त्याग करता है। पण्डित वह है जो मन को संबोधित करता है। पण्डित वह है जो अणुव्रतों का पालन करता है। ऐसा विनयवान् पण्डित विद्वानों के मध्य सुशोभित होता है ॥2॥ पण्डित वह है जो निश्चितरूप से पानी की लहरों की भाँति अपने दोषों का प्रक्षालन करता है और वस्त्रों का त्याग कर देता है। पण्डित वह है जो दूसरे के दोषों का बखान करते हुए लज्जित होता है और अपनी आत्मा का ध्यान करता है ॥3॥ पण्डित वह है जो ज्ञान का उपार्जन करता है और वीतराग प्रभु की दिनरात आराधना करता है। पण्डित वह है जो मिष्ठ वचन बोलता है, धैर्यशील होता है, जिसका चित्त कम्पायमान नहीं होता ।।4।। पण्डित वह है जो मात्सर्य का परित्याग करता है, क्रोध लोभ मद और मोह को विवजित करता है। पण्डित वह है जो अपनी निंदा करता है और तीनों काल जिनेन्द्र भगवान् के चरणकमलों की वन्दना करता है ॥5॥

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