Book Title: Jain Vidya 03
Author(s): Pravinchandra Jain & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 108
________________ जनविद्या 103 ___ जो चारों कषायों से परिमुक्त हैं उनको नमस्कार हो, व्रत, गुण और शील का परिसिंचन करनेवाले को नमस्कार हो, भवसागर के जल को शोषित करनेवाले को नमस्कार हो, प्रात्मस्वरूप का चिन्तन करनेवाले को नमस्कार हो ।।7।। हरिवंश में उत्पन्न होनेवाले देव को नमस्कार हो, कृष्णपीठ निवासी प्रभु के चरणों को नमस्कार हो, कृष्ण और हलधर (बलभद्र) द्वारा सेवित नाथ को नमस्कार हो, कृष्ण की स्त्रियों के संग जलक्रीड़ा करनेवाले को नमस्कार हो ॥8।। कृष्ण का धनुष चढ़ानेवाले वीर (नेमिनाथ) को नमस्कार हो, कृष्ण के जटिल शत्रुओं को नष्ट करनेवाले धीरवीर को नमस्कार हो, कृष्ण की सेज पर आरोहण करनेवाले देव को नमस्कार हो, कृष्ण के नेत्रों में आनन्द उत्पन्न करनेवाले को नमस्कार हो ।।9।। तीनलोक की लक्ष्मीरूपी स्त्री पर जो आसक्त हैं उनको नमस्कार हो, त्रिभुवनपति के तीर्थक्षेत्र को भक्तिपूर्वक नमस्कार हो, तीनलोक के जीवों को संतोषप्रदाता को नमस्कार हो, तीनलोक की लक्ष्मी के विहित निवास को नमस्कार हो ।।10। शौरीपुर में जन्म लेनेवाले को नमस्कार हो, उज्ज्वलगिरि (ऊर्जयन्तगिरि) से निष्क्रमण करनेवाले को नमस्कार हो, उज्ज्वलगिरि पर पापों का क्षय करनेवाले को नमस्कार हो, उज्ज्वलगिरि से निर्वाण प्राप्त करनेवाले को नमस्कार हो ॥11॥ घत्ता ___ यदि भवभव में सम्यग्दर्शन रहे और समाधिपूर्वक मरण होय तो फिर मुनि कनककीति को द्रव्य पाकर गर्व क्यों करना ? ।।12।।

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